जाहरवीर श्री गोगाजी इतिहास दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी का कलिकाल का समय था वर्तमान राजस्थान के तत्कालीन राजपुताना में मंडोर और शाकम्भरी के धर्म स्थान राज सत्ता के केंद्र जाने जाते थे बीकानेर जयपुर जोधपुर अजमेर उदयपुर और कोटा आदि के राज सिंहासन बाद में भी समय समय पर विरासतन स्थापित होते रहे है कर्नल जेम्स टांड ने मरू भूमि का वर्णन करते हुए अपनी पुस्तक में लिखा है की मंडोर मरुस्थली की प्राचीन राजधानी है और हिसार का पुराना किला इसके ईशान कोण में और आबू नहरवाला और भुज दक्षिण में है , आठवी शताब्दी से लेकर तेरहवी शताब्दी तक चौहान राज में अजमेर से सिंध की सिमा तक फैला हुआ था जिसकी राजधानी अजमेर नदौल झालौर सिरोही और जूना चोटन थी इन्दुवति यह प्रदेश इंदुजाति के राजपूतो के बसने के कारण जो प्रतिहारो की प्रसिद्ध शाखा है जो मंडोर के राजा थे , इन्दुवति कहलाता है यह भलोत्र से उतर की और जोधपुर की राजधानी से पस्च्मि की तरफ फैला हुआ है और गोगा थल इसको उतर की तरफ से घेरे हुए है इन्दुवति का थल करीब करीब तीस कोष की परिधि में है गोगादेव का थल चौहानो के वीर रस पूर्ण इतिहास से प्रसिद्ध है गोगादेव जिनको बागड़ के देवता भी कहा जाता है इतिहास की अलग अलग पुस्तकों से गोगाजी को अनेक नमो से उच्चारित किया जाता है श्री जाहरवीर गोगाजी आज भी एक अवतारी शक्ति के रूप में पूजे जाते है श्री गोगादेव ने तत्कालीन ददरेवा स्टेट के महाराणा जेवर सिंह के घर अवतार लिया था राजा महाराजा और राणा महाराणा के नाम से प्रचलित राज सताओ के हिसाब से उस वक्त मंडोर सपादलक्ष और शाकम्भरी के सत्ता केंद्र विधमान थे जो चौहान वंश के तौर पर सांभर से विस्तारित हुए थे महाराणा जेवरसिँह को भी आम प्रजाजन जोरावर जीवराज जाहर,झावर के सम्बोधन भिन्नता के साथ पुकारते थे जेवर महाराणा अमर के पुत्र थे उस समय में अति स्नेह श्रद्धा व् यश की भावनाओ के साथ उनके वीर योद्धा और सद्पुरषो को उनके वयक्तित्व की दृस्टि से अलग अलग जगह की जनता द्वारा अलग अलग नामो से सम्बोदित करने की एक उपमामयी संस्कृति थी महाराणा जेवर सिंह एक अति धर्म प्रणयन व् दयालु महाराजा थे महारणा जेवर की शादी हरियाणा राज्य में शिथत सिरसा के ठाकुर कुंवरपाल की पुत्री बाछल के साथ हुई थी महारानी बाछल भी एक अतयंत धर्म पालक महिला थी वह प्रीति दिन सेंकडो गरीबो अनाथो व साधु संतो को भोजन कराने के पश्चात खुद भोजन करती थी महाराणा जेवर सिंह के राजमहल और राज्य छेत्र में आदिशक्ति माँ गायत्री व् सतचंडी के हवन अभिषेको के धार्मिक अनुष्ठान होते रहते थे बाछल रानी की ऐसी तपश्या और भक्ति देखकर एक गोरख पंथी साधु ने यह भविष्य वाणी की थी और माता बाछल के गर्भ में जो जातक पैदा होगा वह भगवान विष्णु का अवतार और परम शिव भक्त होगा वह सरे जंतर मंत्र और तंत्र में पारंगत होगा वह अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना करेगा था अपने प्रताप और शौर्य के कारण जगत विख्यात हो जायेगा साधु नाथ की भविष्यवाणी सही साबित हुई ददरेवा के राजमहल में गोगाजी के जन्म के साथ ही अनेक चमत्कार दिखलाई देने लग गए थे उनके जन्म के साथ ही राजमहल के मंदिरो की घंटिया अपने आप बजने लगी माँ भगवती गायत्री महाकाली और शिव मंदिरो की मुर्तिया मुस्कराती हुई दिखलाई पड़ने लग गई थी महल में पड़े सवर्ण रजत और कस्य के थाल अपने आप खन खाना उठे थे और उनके जन्म के बाद शेष नाग की छाया गोगाजी के पालने पर रक्षा कवच के रूप में दिखाई देने लगी थी महारणा जेवर के जिस राजसी बाग के कुआ में खारा पानी निकलता था वह गोगाजी के जन्मते ही अपने आप मीठा हो गया था जिन कुआ में पानी सुख गया था उनमे जल स्त्रोत अपने आप फुट पड़े थे नोलखा बाग अपने आप हरा भरा हो गया था ददरेवा की ख्याति ऐसे ही अनेकानेक चमत्कारों के साथ दूर दूर तक फैलने लग गई थी कालांतर में जहा जहा भी चौहान और राठोड वंश का साम्राज्य था वह पर गोगा जी का शौर्य साम्राज्य फैलने लगा था आज भी गोगामेड़ी मंदिर में ५० लाख से जयादा श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहाँ धोक लगाने आते है महराणा जेवर व् माता बाछल के दाम्पत्य से एक अति प्रतापी अवतारी जातक ने जन्म लिया जिसकी प्रिसिद्धि आते चलकर सम्पूर्ण भारत वर्ष में फैलती गई और आज भी करोडो भारत वाशी उसी गोगादेव को ,गोगा ,गोगा बाबा , गुग्गा ,गोगावीर ,कल्किदूत कल्कि बाबा और कलयुग के अवतार के नामो से पूजा जाते है हल बेल बाला किसान और ऊंट का हाली गोगाराखड़ी को याद रखता है मान्यता है की राक्षसूत्र उसे सरे सर्प और विष्णुओं से बचाकर धन धान्य और सुख समृद्धि को दिलाता है , गोगाराखड़ी ग्राम्य जीवन का ये आम विश्वाश है और भाद्रपद मास की गोगा नवमी भारतीय पंचाँग का एक पर्व दिवस है इस दिन हर छेत्र में कुम्हार द्वारा निर्मित गोगा घोडा की मूर्ति घर घर पूजी जाती है . खीर लापसी पुए चूरमा जैसे दूध खाद्य्न के पकवान और सूखे मेवे गोगादेव के प्रिय परसादी भोजन में आज भी शामिल किये जाते है गोगाजी ने दिन दुखियो गरीबो बेसहारा बी दलितों के लिए अपना दिल व् दरवाजा सदैव खुला रखा कोई भी उनके द्वार से निराश नहीं लोटा , उनका नाम सुनकर अपराधी भाग छूटते थे इनके आलावा भी इनके राज्य में सर्वत्र सामाजिक समरसता और गुणग्राहिता थी कुछ स्वार्थसाधक कहानीकारों ने गोगाजी के जन्म जीवन और मृत्यु के बारे में अनेक मिथ्या गलत कहानिया लिख डाली है गोगाजी का मनुष्य जन्म एक सामान्य पर अलौकिक घटना थी और गोगाजी की मृत्यु किसी दुश्मन के हाथो नहीं हुई थी वल्कि उनका देहावसान स्वत समाधिस्त होकर एक परम सत्ता के रूप में परोक्ष गमन व् माहपर्यण था गोगाजी आज भी अपने भक्तो के लिए सवत्र विध्यमान और सर्वशक्तिमान है गोगाजी का जन्म भगवान राम और श्री कृष्ण की तरह कलयुग की ऐसी ही विकट घडी में विष्णु अवतार के रूप में हुआ था धर्म की रक्षा और अधर्म की समाप्ति के लिए गोगाजी ने इस देव धरा पर अवतार लिया था भारत के पश्चिम उत्तर व् अफगान की तरफ से आने वाले महमूद गजनवी जैसे मुस्लिम आक्रांताओ ने जब गौ वध करने मंदिर लूटने और निर्दोष जनता का दमन करने के लिए आक्रमण करने आरम्भ किये तो गोगाजी ने भटनेर किये से १७ बार उनका मुँह तोड़ जबाब दिया बार बार मुँह की खाने के बाद आक्रमणकारियों द्वारा कुटिल चाल के रूप में हजारो गौ को गोगाजी की सेना के सामने दौड़ा दिया ताकि गोगाजी गौ से घिरे हुए किसी पर वार न कर सके क्योकि गोगाजी परम् गौ भक्त और गौ रक्षक थे अत गौ की रक्षा करते हुए भी उन्होंने आक्रमणकारियो को सोमनाथ मंदिर में जाने से रोका जब उन्होंने देखा की साइड से भागते हमलवार और रोकने के लिए उनको गौ के झुण्ड में से गौ को आहात करके जाना होगा तो ऐसे में उन्होंने मर्यादा पुरुसोत्तम का आदर्श स्थापित करते हुए अपने प्रमुख सेनापति नाहरसिंह पांडे के सामने या रहस्योंद्घाटन किया की वे अब ९३ वर्ष के मानव जीवन को गौ रक्षा व् समाज हित हेतु छोड़ रहे है और स्थूल सरीर से सूक्ष्म शक्ति के रूप में प्रवर्तन कर रहे है इसी सृष्टि चक्र के कालकर्म में उन्होंने वर्तमान गोगामेड़ी में समाधी लेकर विराट शक्ति का सर्जन किया पंडित नाहर सिंह पांडे ने इस समाधी पर सर्व प्रथम दीपक जलाया जो आज भी पहली ज्योति या नरसी ज्योत के रूप में पूजा जाता है श्री गोगाजी का विष्णु अवतार और परम शिव भक्त माना जाता है इनके जन्म के कई वर्ष पूर्व एक धर्म परायण ब्राह्मण दम्पंती के यहाँ गुरुगोरख नाथ जी का जन्म हुआ था से से ही माँ सरस्वती पुत्र गुर गोरखनाथ जी के द्वारा सीकर चूरू जिले में अनगिनत गाँवो में साधु संतो की जमात तकिया धूणी और जंगलो की तपस्थलो में विराजकर अलौकिक ज्ञान अर्जित करते थे ऐसे में ही एक भर्मणशील तप पूत साधु की गोगाजी के बारे में उपरोक्त भविष्यवाणी जग जाहिर हो चुकी थी यह जातक मानव शक्तियो के चमत्कार दिखलाकर पुन अपनी ईश्वरीय सत्ता में सत्यापित हो जायेगा वही हुआ श्री गोगाजी की जीवन लीलाओ में मातृशक्ति देवियो के दृष्टान्त और विष्णु अवतार की राम लीला व् कृष्ण कथा के साथ साथ उनकी परम शिव भक्ति का सवरूप देखने को मिलता है यह बड़ा विशद विषय है की भगवान किस किस समय पर कौन कौन सा अवतार ग्रहण करते है मनुष्य स्वार्थ वंश अलग अलग अवतार की पूजा अर्चना करता है यदि भक्त नहीं होंगे भगवान कहा होंगे फिर तेरी समस्या का समाधान कहा होगा वास्तव में श्री जाहरवीर गोगाजी अत्यचारिओ पापी अधर्म आतंकवादियों व् लुटेरों का विनाश करने के लिए और दिन हिन् दुर्बल व् असहयो लोगो की रक्षा करने के लिए अवतरित हुए थे आक्रांताओ का गौ संहार और पापा चार देखकर श्री गोगाजी ने प्रत्यक्ष व् परोक्ष शक्ति का रूप धारण किया और अपने सगे मोसेरे भाइयो अर्जुन व् सुरजन का वध तक की परवाह नहीं की तथा आम जनता के दुःख दर्द दूर करने हेतु आज भी इस विलुप्त सरस्वती नदी के तीर पर समाधिस्थ होकर अपने भक्तजन की सार संभाल कर रहे है ।