गोगामेड़ी में निशान यात्रा का बहुत बड़ा महत्व है निशान यात्रा एक तरह की पद यात्रा है भक्त लोग अपने अपने गांव में पहले निशान बैठाया जाता है उसके बाद पुरे गांव में निशान घुमाया जाता है पुरे गांव की सुख शांति के लिए निशान को पुरे श्रदा के साथ गांव में घुमाया जाता है और पुरे महीने निशान की सेवा की जाती है भक्तो की मान्यता है की निशान में पांचो वीरो का पहरा होता है उसके बाद इस निशान को गोगामेड़ी मंदिर लाया जाता है और समाधी के सामने निशान छुकाया जाता है और नाहर सिंह पण्डे कुंड पर निशान को स्नान करवाया जाता है उसके बाद निशान को भक्त अपने घर ले जाते है निशान का सवरूप :- केशरी नीला ,सफ़ेद ,लाल रंग के होते है सबसे ऊपर निशान में मोर पंख सजाई जाती है और नारियल बाँदा जाता है इसके एक सिरे पर एक रस्सी बंधी होती है कुछ भक्त सोने और चांदी के छतर भी लगे होते है
श्री जाहरवीर गोगा देव जी महाराज सामाजिक समरसता के प्रतीक और पुरोधा है हिन्दू धर्म में छुआछूत की कुप्रथा मिटाने के लिए उन्होंने सभी जातीय के लोगो को सामान अधिकार दिया था 1 मेधवाल जाती में भजु कोतवाल और वाल्मीकि जाती से श्यामलाल चावरिया के सुपुत्र रतन सिंह चावरिया उनके खास सिपहसालार थे श्री रतन सिंह चावरिया जाहरवीर गोगादेव के ध्वज रक्षक थे उह्नोने अपना बलिदान गजनवी के साथ युद्ध में दिया जाहरवीर गोगाजी ने इनके पिता को वरदान दिया और ध्वजा ( निशान ) में वास का बचन दिया और कहा की इस निशान में पांचो वीर प्रकट होंगे और आज भी वाल्मीकि समाज निशान बैठाने का कार्य करते है
हथियारों की सर संभाल में दक्षता रखने वाले मेघवाल जाती के भज्जू कोतवाल को शस्त्रागार का इंचार्ज बनाया गया नाहर सिंह ,नीला घोडा ,भज्जू और रत्न सिंह जी के बिना गोगा जी का परिवार अधूरा माना जाता है
जाहरवीर गोगाजी का प्रचीन मंदिर लगभग 1000 वर्ष से पुराना इतिहासिक मंदिर है जो श्रीगंगानगर जयपुर की रेल लाइन पर हनुमानगढ़ जिले में गोगामेड़ी रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर की दुरी पर स्थित है एक तरफ गोगाजी का मंदिर है तो दूसरी तरफ गोगाणा गांव का गोरखटीला है सम्पूर्ण भारत में और विशेषकर उत्तरी भारत में गोगाजी की लोकप्रियता इस उक्ति से आंकी जा सकती है गांव गांव में गोगा ,अर गांव गांव में खेजड़ी अथार्थ हर गांव में खेजड़ी के पेड़ के निचे गोगाजी का थान देखने को मिलेगा गोगामेडी गोगादेव के मंदिर का नाम है इसी मंदिर के कारण इस गांव का नाम गोगामेड़ी पड़ा ऊचे स्थान पर बने इस मंदिर के कारण इस गोगामेड़ी नाम दिया गया यह मंदिर एक मंजिल का है पर ऊचे टीले पर स्थित है कुछ भक्तो के द्वारा अपने देश प्रदेश की उच्चारण भिन्न्नता के कारण इस GOGAMADI कहा जाता है मुख्य मंदिर में प्रवेश करते ही सामने छोटी सी चबुतरीनुमा समाधी संगमर का स्मारक बना हुआ है इस स्मारक पर समाधी मूर्ति दिग्दर्शित है इस समाधी पर उतकेरित तीन मूर्तियों के दर्शन होते है बिच में घोड़े पर सवार गोगादेव जी है ,घोड़े के आगे राजगुरु सेनापति नाहरसिंह पांडे और घोड़े के पीछे शस्त्रागार प्रभारी भज्जू कोतवाल मूर्तिमान है मंदिर के इसी गर्भ ग्रह के बराबर बाई तरफ की दिवार में मंदिर में सबसे प्रथम नाहर सिंह पांडे द्वारा पूजित गोगा ज्योति ( दीपक ) अखंड रूप में पर्वजललित रहती है श्री गोगाजी द्वारा समाधी लेने के बाद सर्व प्रथम उन्ही की पूजा अर्चना हेतु नाहर सिंह पांडे ने मंदिर की प्रथम ज्योति जलाई थी जिसके कारण इस प्रथम दीपक को नाहरसिंह पांडे ज्योत व् समाधी ज्योत कहा जाता है आगे बढ़ने पर निकास द्वार से थोड़ा पहले मंदिर की रौशनी हेतु दूसरा दीपक भी मौजूद है मुख्य मंदिर से निकलने के बाद परिक्रमा में नाहरसिंह पांडे जी का जल कुंड है जो लगभग चार पांच फ़ीट के गोलाकार आयत में है इसी नाहर सिंह कुंड के सामने नतमस्तक होकर भक्त गण मनौती पूरी होने का आशीर्वाद लेते है जल कुंड से पानी का थापा ,छींटा या जल का स्पर्श मात्र इस बात का आशीर्वाद माना जाता है की भक्त की मनोकामन पूरी होगी (आज भी नाहर सिंह पांडे जी के वशंज कुंड पर भक्तो को आशीर्वाद देते है )
गोगा मेडी मंदिर की मिश्रित स्थापत्य कला आरम्भ में यह मंदिर पंडित नरसी पांडे द्वारा मंडप के रूप में स्थापित होकर निर्मित हुआ इस मंदिर का सवरूप बहार से मिश्रित स्थापत्य की शैली में एक सामान्य नजर में मस्जिदनुमा लगता है भारत सहित विश्व में अनेक स्थानों पर लगभग इस प्रकार की मिलती जुलती शैली के अनेक मंदिर देखे जा सकते है भगवान वराह अवतार के मंदिर की वनावट भी इसी स्थापत्य शैली में पाई जाती है गोगाजी मंदिर में आदि समय से ॐ जय जगदीश हरे की आरती और सेवा पूजा भोग अर्चना होने के कारण यह मंदिर आरम्भ से ही एक राष्ट्र ख्यात देवालय रहा है
जाहरवीर श्री गोगाजी इतिहास दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी का कलिकाल का समय था वर्तमान राजस्थान के तत्कालीन राजपुताना में मंडोर और शाकम्भरी के धर्म स्थान राज सत्ता के केंद्र जाने जाते थे बीकानेर जयपुर जोधपुर अजमेर उदयपुर और कोटा आदि के राज सिंहासन बाद में भी समय समय पर विरासतन स्थापित होते रहे है कर्नल जेम्स टांड ने मरू भूमि का वर्णन करते हुए अपनी पुस्तक में लिखा है की मंडोर मरुस्थली की प्राचीन राजधानी है और हिसार का पुराना किला इसके ईशान कोण में और आबू नहरवाला और भुज दक्षिण में है , आठवी शताब्दी से लेकर तेरहवी शताब्दी तक चौहान राज में अजमेर से सिंध की सिमा तक फैला हुआ था जिसकी राजधानी अजमेर नदौल झालौर सिरोही और जूना चोटन थी इन्दुवति यह प्रदेश इंदुजाति के राजपूतो के बसने के कारण जो प्रतिहारो की प्रसिद्ध शाखा है जो मंडोर के राजा थे , इन्दुवति कहलाता है यह भलोत्र से उतर की और जोधपुर की राजधानी से पस्च्मि की तरफ फैला हुआ है और गोगा थल इसको उतर की तरफ से घेरे हुए है इन्दुवति का थल करीब करीब तीस कोष की परिधि में है गोगादेव का थल चौहानो के वीर रस पूर्ण इतिहास से प्रसिद्ध है गोगादेव जिनको बागड़ के देवता भी कहा जाता है इतिहास की अलग अलग पुस्तकों से गोगाजी को अनेक नमो से उच्चारित किया जाता है श्री जाहरवीर गोगाजी आज भी एक अवतारी शक्ति के रूप में पूजे जाते है श्री गोगादेव ने तत्कालीन ददरेवा स्टेट के महाराणा जेवर सिंह के घर अवतार लिया था राजा महाराजा और राणा महाराणा के नाम से प्रचलित राज सताओ के हिसाब से उस वक्त मंडोर सपादलक्ष और शाकम्भरी के सत्ता केंद्र विधमान थे जो चौहान वंश के तौर पर सांभर से विस्तारित हुए थे महाराणा जेवरसिँह को भी आम प्रजाजन जोरावर जीवराज जाहर,झावर के सम्बोधन भिन्नता के साथ पुकारते थे जेवर महाराणा अमर के पुत्र थे उस समय में अति स्नेह श्रद्धा व् यश की भावनाओ के साथ उनके वीर योद्धा और सद्पुरषो को उनके वयक्तित्व की दृस्टि से अलग अलग जगह की जनता द्वारा अलग अलग नामो से सम्बोदित करने की एक उपमामयी संस्कृति थी महाराणा जेवर सिंह एक अति धर्म प्रणयन व् दयालु महाराजा थे महारणा जेवर की शादी हरियाणा राज्य में शिथत सिरसा के ठाकुर कुंवरपाल की पुत्री बाछल के साथ हुई थी महारानी बाछल भी एक अतयंत धर्म पालक महिला थी वह प्रीति दिन सेंकडो गरीबो अनाथो व साधु संतो को भोजन कराने के पश्चात खुद भोजन करती थी महाराणा जेवर सिंह के राजमहल और राज्य छेत्र में आदिशक्ति माँ गायत्री व् सतचंडी के हवन अभिषेको के धार्मिक अनुष्ठान होते रहते थे बाछल रानी की ऐसी तपश्या और भक्ति देखकर एक गोरख पंथी साधु ने यह भविष्य वाणी की थी और माता बाछल के गर्भ में जो जातक पैदा होगा वह भगवान विष्णु का अवतार और परम शिव भक्त होगा वह सरे जंतर मंत्र और तंत्र में पारंगत होगा वह अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना करेगा था अपने प्रताप और शौर्य के कारण जगत विख्यात हो जायेगा साधु नाथ की भविष्यवाणी सही साबित हुई ददरेवा के राजमहल में गोगाजी के जन्म के साथ ही अनेक चमत्कार दिखलाई देने लग गए थे उनके जन्म के साथ ही राजमहल के मंदिरो की घंटिया अपने आप बजने लगी माँ भगवती गायत्री महाकाली और शिव मंदिरो की मुर्तिया मुस्कराती हुई दिखलाई पड़ने लग गई थी महल में पड़े सवर्ण रजत और कस्य के थाल अपने आप खन खाना उठे थे और उनके जन्म के बाद शेष नाग की छाया गोगाजी के पालने पर रक्षा कवच के रूप में दिखाई देने लगी थी महारणा जेवर के जिस राजसी बाग के कुआ में खारा पानी निकलता था वह गोगाजी के जन्मते ही अपने आप मीठा हो गया था जिन कुआ में पानी सुख गया था उनमे जल स्त्रोत अपने आप फुट पड़े थे नोलखा बाग अपने आप हरा भरा हो गया था ददरेवा की ख्याति ऐसे ही अनेकानेक चमत्कारों के साथ दूर दूर तक फैलने लग गई थी कालांतर में जहा जहा भी चौहान और राठोड वंश का साम्राज्य था वह पर गोगा जी का शौर्य साम्राज्य फैलने लगा था आज भी गोगामेड़ी मंदिर में ५० लाख से जयादा श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहाँ धोक लगाने आते है महराणा जेवर व् माता बाछल के दाम्पत्य से एक अति प्रतापी अवतारी जातक ने जन्म लिया जिसकी प्रिसिद्धि आते चलकर सम्पूर्ण भारत वर्ष में फैलती गई और आज भी करोडो भारत वाशी उसी गोगादेव को ,गोगा ,गोगा बाबा , गुग्गा ,गोगावीर ,कल्किदूत कल्कि बाबा और कलयुग के अवतार के नामो से पूजा जाते है हल बेल बाला किसान और ऊंट का हाली गोगाराखड़ी को याद रखता है मान्यता है की राक्षसूत्र उसे सरे सर्प और विष्णुओं से बचाकर धन धान्य और सुख समृद्धि को दिलाता है , गोगाराखड़ी ग्राम्य जीवन का ये आम विश्वाश है और भाद्रपद मास की गोगा नवमी भारतीय पंचाँग का एक पर्व दिवस है इस दिन हर छेत्र में कुम्हार द्वारा निर्मित गोगा घोडा की मूर्ति घर घर पूजी जाती है . खीर लापसी पुए चूरमा जैसे दूध खाद्य्न के पकवान और सूखे मेवे गोगादेव के प्रिय परसादी भोजन में आज भी शामिल किये जाते है गोगाजी ने दिन दुखियो गरीबो बेसहारा बी दलितों के लिए अपना दिल व् दरवाजा सदैव खुला रखा कोई भी उनके द्वार से निराश नहीं लोटा , उनका नाम सुनकर अपराधी भाग छूटते थे इनके आलावा भी इनके राज्य में सर्वत्र सामाजिक समरसता और गुणग्राहिता थी कुछ स्वार्थसाधक कहानीकारों ने गोगाजी के जन्म जीवन और मृत्यु के बारे में अनेक मिथ्या गलत कहानिया लिख डाली है गोगाजी का मनुष्य जन्म एक सामान्य पर अलौकिक घटना थी और गोगाजी की मृत्यु किसी दुश्मन के हाथो नहीं हुई थी वल्कि उनका देहावसान स्वत समाधिस्त होकर एक परम सत्ता के रूप में परोक्ष गमन व् माहपर्यण था गोगाजी आज भी अपने भक्तो के लिए सवत्र विध्यमान और सर्वशक्तिमान है गोगाजी का जन्म भगवान राम और श्री कृष्ण की तरह कलयुग की ऐसी ही विकट घडी में विष्णु अवतार के रूप में हुआ था धर्म की रक्षा और अधर्म की समाप्ति के लिए गोगाजी ने इस देव धरा पर अवतार लिया था भारत के पश्चिम उत्तर व् अफगान की तरफ से आने वाले महमूद गजनवी जैसे मुस्लिम आक्रांताओ ने जब गौ वध करने मंदिर लूटने और निर्दोष जनता का दमन करने के लिए आक्रमण करने आरम्भ किये तो गोगाजी ने भटनेर किये से १७ बार उनका मुँह तोड़ जबाब दिया बार बार मुँह की खाने के बाद आक्रमणकारियों द्वारा कुटिल चाल के रूप में हजारो गौ को गोगाजी की सेना के सामने दौड़ा दिया ताकि गोगाजी गौ से घिरे हुए किसी पर वार न कर सके क्योकि गोगाजी परम् गौ भक्त और गौ रक्षक थे अत गौ की रक्षा करते हुए भी उन्होंने आक्रमणकारियो को सोमनाथ मंदिर में जाने से रोका जब उन्होंने देखा की साइड से भागते हमलवार और रोकने के लिए उनको गौ के झुण्ड में से गौ को आहात करके जाना होगा तो ऐसे में उन्होंने मर्यादा पुरुसोत्तम का आदर्श स्थापित करते हुए अपने प्रमुख सेनापति नाहरसिंह पांडे के सामने या रहस्योंद्घाटन किया की वे अब ९३ वर्ष के मानव जीवन को गौ रक्षा व् समाज हित हेतु छोड़ रहे है और स्थूल सरीर से सूक्ष्म शक्ति के रूप में प्रवर्तन कर रहे है इसी सृष्टि चक्र के कालकर्म में उन्होंने वर्तमान गोगामेड़ी में समाधी लेकर विराट शक्ति का सर्जन किया पंडित नाहर सिंह पांडे ने इस समाधी पर सर्व प्रथम दीपक जलाया जो आज भी पहली ज्योति या नरसी ज्योत के रूप में पूजा जाता है श्री गोगाजी का विष्णु अवतार और परम शिव भक्त माना जाता है इनके जन्म के कई वर्ष पूर्व एक धर्म परायण ब्राह्मण दम्पंती के यहाँ गुरुगोरख नाथ जी का जन्म हुआ था से से ही माँ सरस्वती पुत्र गुर गोरखनाथ जी के द्वारा सीकर चूरू जिले में अनगिनत गाँवो में साधु संतो की जमात तकिया धूणी और जंगलो की तपस्थलो में विराजकर अलौकिक ज्ञान अर्जित करते थे ऐसे में ही एक भर्मणशील तप पूत साधु की गोगाजी के बारे में उपरोक्त भविष्यवाणी जग जाहिर हो चुकी थी यह जातक मानव शक्तियो के चमत्कार दिखलाकर पुन अपनी ईश्वरीय सत्ता में सत्यापित हो जायेगा वही हुआ श्री गोगाजी की जीवन लीलाओ में मातृशक्ति देवियो के दृष्टान्त और विष्णु अवतार की राम लीला व् कृष्ण कथा के साथ साथ उनकी परम शिव भक्ति का सवरूप देखने को मिलता है यह बड़ा विशद विषय है की भगवान किस किस समय पर कौन कौन सा अवतार ग्रहण करते है मनुष्य स्वार्थ वंश अलग अलग अवतार की पूजा अर्चना करता है यदि भक्त नहीं होंगे भगवान कहा होंगे फिर तेरी समस्या का समाधान कहा होगा वास्तव में श्री जाहरवीर गोगाजी अत्यचारिओ पापी अधर्म आतंकवादियों व् लुटेरों का विनाश करने के लिए और दिन हिन् दुर्बल व् असहयो लोगो की रक्षा करने के लिए अवतरित हुए थे आक्रांताओ का गौ संहार और पापा चार देखकर श्री गोगाजी ने प्रत्यक्ष व् परोक्ष शक्ति का रूप धारण किया और अपने सगे मोसेरे भाइयो अर्जुन व् सुरजन का वध तक की परवाह नहीं की तथा आम जनता के दुःख दर्द दूर करने हेतु आज भी इस विलुप्त सरस्वती नदी के तीर पर समाधिस्थ होकर अपने भक्तजन की सार संभाल कर रहे है ।
हिंदू धर्म में गोगा नवमी का खास महत्व बताया गया है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष नवमी को गोगा नवमी देश के कई हिस्सों में मनाई जाती है। श्री गोगादेव को कलयुग का विष्णु अवतार और परम शिव भक्त माना जाता है इनकी पूजा आराधना के लिए सभी प्रकार की स्थिति और समय अनुकूल है श्री गोगामेड़ी की धरती पर पैर रखते ही सर्वप्रथम समाधी मूर्ति के मंदिर और नाहर सिंह पांडे जी का ध्यान आता है गोरख टीले के तालाब में स्नानं कर लेने मात्र से गंगा यमुना गोदावरी नर्मदा और सरस्वती पांचो नदियों में नहाने का पुण्य प्रभाव प्राप्त होता है नहाने के बाद श्री गोगादेव मंदिर में दर्शन और पूजन हेतु जाना चाहिए गोगामेड़ी में सर्व प्रथम श्री गोगाजी मंदिर में ही दर्शन करने की प्राचीन परिपाटी है मंदिर के दरवाजे को पार करके समाधी मूर्ति के सामने खड़े होकर घोड़े पार सवार श्री गोगाजी और उनके साथ आगे खड़े पंडित नाहर सिंह पांडे और पीछे खड़े भज्जू कोतवाल का एक साथ एक मूर्ति के रूप में आंखे खोलकर और बंद करके ध्यान करना चाहिए I श्री नाहर सिंह पांडे द्वारा पूजित प्रथम ज्योत की लौ लेकर फिर बाहर जल कुंड पर आकर पानी का थापा या छींटा लगवाना चाहिए चिरमान्यता है की ऐसा करने पर गोगाजी तीर्थ यात्रा को स्वीकार करते है और भक्त की मनोकामना पूरी करते है इस पूजन से ही श्री गोगाजी की तीर्थ यात्रा सम्पूर्ण मानी जाती है प्रसाद के रूप में :- पुष्प से लेकर फल .नारियल ,गट्ट,पतासे ,मिष्ठान, सूखे मेवे तक कुछ भी शुद्ध खाद्य अर्पित किया जा सकता है विशेष प्रसादी :- प्रसाद के रूप में पांच व्यक्तियो अथवा इससे जयादा अधिक किसी भी संख्या में भोजन कराया जा सकता है सवामणी अपनी इच्छा अनुसार लगा सकते है और जानकारी के लिए मंदिर पुजारियों से बात कर सकते हो
यह पूजा स्थान जलकुंड सरस्वती नदी की भूमिगत जलधारा के ऊपर पंडित नाहर सिंह पांडे का मौलिक पूजा स्थान है I नाहार सिंह पांडे महाराजा गोगादेव के प्रधानमंत्री ,सेनापति और राजपंडित थे । नाहर सिंह पांडे ने ही यहाँ १००० वर्ष पूर्व में हिन्दू तिथि भादो शुक्ल नवमी विक्रम सम्वत १०८२ तदनुसार माह अगस्त सन १०२५ को भगवान गोगादेव के समाधिस्थ महाप्रयाण के पश्चात मंदिर की समाधी मूर्ति के पास मंदिर मंडप की दिवार के आले में पूजा की प्रथम ज्योत ( चिराग ) प्रजवलित की थी I यह स्थान उस समय प्रवाहमान सरस्वती नदी के किनारे ( जो अब भी निचे भूमिगत होकर विधमान है ) पर था महाराजा गोगादेव का अवतरण भादो कृष्णा अष्ट्मी व् नवमी की मध्य रात्रि विक्रम सम्वत ९८९ तदनुसार माह अगस्त सन ९३२ को बागड़ प्रदेश में हुआ था I यहाँ तीर्थ यात्रा की मनोकामना पूर्ण होने हेतु गोगाशीष- जल का छींटा थापा -कूंची द्वारा पूजन कराया जाता है I श्री नाहरसिंह पाण्डे जी के वसंज यहाँ पर भगतो की मनौती पूर्ण होने की कामना के साथ पूजा करवाते है I नाहर सिंह पाण्डे :- पिता का नाम :- मल्लू दत्त माता का नाम :- शरबती देवी नाहर सिंह जी को अनेक नामो से जाना जाता है जैसे :- दादा नरसी पाण्डे ,नरसिंह दत्त ,नरसी पुरोहित ,नरसी राणा ,नन्दीदत्त ॥ नाहार सिंह पांडे महाराजा गोगादेव के प्रधानमंत्री ,सेनापति और राजपंडित थे गोगाजी के दादा जी अमर जी द्वारा भठिंडा ( पंजाब ) से लाये सारस्वत ब्राह्मण परिवार के पंडित मालाराम ( मल्लू दत्त ) नाहर सिंह पाण्डे बड़े विद्वान और सचरित्र पुरुष थे नाहर सिंह जी ही गोगाजी के प्रिय मित्र थे गोगाजी जब कभी क्रुद्ध हो जाते तो कोई इनके निकट नहीं जा सकते थे तब नाहर सिंह जी ही उनके समुख जाकर बात करने का साहस करते थे गोगाजी महल में नंदीदत्त ही एक पुरुष थे उनके ऊपर कठिन कर्तव्य का भारी भार था नाहर सिंह पाण्डे जी ने ही गोगाजी के दोनों पुत्रो को सज्जन और सामत दोनों को अक्षरा अभ्यास कराकर शास्त्र का अभ्यास करवाया था 1 नाहर सिंह पाण्डे जी का दूत कार्य :- गोगादेव् ने नाहर सिंह पाण्डे को जब राजदूत के कर्तव्य का निर्वहन करने हेतु काबुल भेजा तो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही मौखिक कथाओ के आधार पर विरचित पुरानी पुस्तको का यह गीत आला उदल की तर्ज़ पर भक्तो की जुबान पर सुना जा सकता है जहा कचहरी लगी हुई थी : नरसिंह पाण्डे पहुंच जाये । शोभा आ रही दरबार में : जिसका हॉल कहा न जाये । कुर्सी कुर्सी पर थे शहजादे : MUDE MUDE पर सरदार । कड़का कर रहे डोम वहाँ पर : उनकी रहे तारीफ सुनय । नरसिंह पाण्डे ने जा कर के सबको दीना शीश छुकाय । साथ हाथ के सिहासन पर बैठे सरवर और सुल्तान । चिठ्ठी दे दी जा नरसिंह ने सभी भूल गए ओसन । चिठ्ठी पढ़ी तभी उन्होंने भाई सुन लो कान लगाए जैसी चिठ्ठी लिखकर आई सबको दू में सुनाय सात पांच को नरसिंह मारे दीनी थी मारा मार मचाय तीन सौ जवान मरे सरवर के सब दल तिड़ीबीड़ी हो जाए जब ये देखा है नरसिंह ने अपना घोडा दिया बढ़ाए काले बादल की लाली में जैसे कला कबूतर खाए सर सर सर सर उड़ता जावे अम्बर पंख दिए फैलाय तब्बू लग रहे जहा देवो के घोडा निचे उतरा है जाए
जन्मोत्सव गोगाजी मंदिर में भादव कृष्ण पक्ष नवमी के दिन गोगाजी का जन्मदिवस भी मनाया जाता है |
गोगामेड़ी के मेले में हर वर्ष पशु मेले का भी आयोजन किया जाता है जिसमे राज्य सरकार के पशु पालन भिभाग द्वारा मेले की व्यवस्था की जाती है हर वर्ष भादव मेले का ध्वजरोहण समारोह और प्रारभिक पूजा अर्चना श्री गोगाजी मंदिर के मुख्य द्वार पर राजस्थान सरकार के पशुपालन भिभाग द्वारा आयोजित की जाती है जो श्रवणी पूर्णिमा को होती है इसमें गोगाजी मंदिर के अनुवांशिक ब्राह्मण पुजारी से ही पूजा सम्पन्न कराइ जाती है
भक्तों द्वारा सेवा कर्म (मनौतियां) भक्तों एवं दर्शनार्थियों द्वारा मंदिर परिसर में कुल देवता की सेवा के
1. कर्म मनौतियां
2. जात ( जड़ूले)
3. सवामणी प्रसादी
4. नवविवाहित गठजोड़ की जात
5. नवजात शिशु के जन्म दिवस की वर्षगांठ पर प्रथम मुंडन संस्कार
6. निशान (ध्वजा) पहराना
7. गोगामेड़ी में आकर वर एवं वधू पक्ष द्वारा शुभ कार्य, विवाह आदि संपन्न कराना
8. रात्रि जागरण (भजन संध्या) करना
9. मनौतीओं हेतु आवेदन लगाना अर्थात नाल मौली से नारियल मंदिर परिसर में बांधना
दैनिक एवं विशिष्ट श्रृंगार
10. कुलदेवता से कुल परंपराएं श्री गोगाजी को ही समर्पित है। गीतों में गुणगान का प्राचुर्य । लोकगीतों का अक्षय
भंडार। रस, भक्ति , भाव प्रवणता है आनंद विभोर की अपूर्व क्षमता
पेट पलायन एवं दंडवत
फूलों का श्रृंगार